
रिपोर्ट: विक्रम सेन
नई दिल्ली। देश के हजारों गरीब कैदियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक मानवीय और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि अब कोई भी व्यक्ति सिर्फ आर्थिक तंगी के कारण जेल में नहीं रहेगा। अदालत ने आदेश दिया है कि यदि किसी आरोपी को जमानत मिल चुकी है, लेकिन वह जमानत राशि देने में असमर्थ है, तो उसकी सहायता जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के माध्यम से की जाएगी।
यह राहत एक लाख रुपये तक की जमानत राशि तक दी जा सकेगी — जिससे उन हजारों कैदियों को आज़ादी मिलेगी जो वर्षों से सिर्फ पैसों के अभाव में जेलों में बंद हैं।
कोर्ट ने कहा — “गरीबी जेल का कारण नहीं बन सकती”
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एम.एम. सुनीरेश और जस्टिस एस.सी. शर्मा की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार” हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। यदि किसी व्यक्ति को अदालत से जमानत मिल चुकी है, तो सिर्फ पैसे की कमी के कारण उसे जेल में रखना न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
पीठ ने कहा, “जमानत आदेश के बावजूद यदि कोई व्यक्ति केवल आर्थिक अभाव में जेल में रह रहा है, तो राज्य का कर्तव्य है कि वह उसकी सहायता करे।”
कैसे काम करेगी नई व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि प्रत्येक जिले में एक अधिकार प्राप्त समिति (District Level Empowered Committee) गठित की जाएगी, जिसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी (DM) करेंगे।
इस समिति में निम्न सदस्य होंगे —
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव (Convener)
पुलिस अधीक्षक (SP)
संबंधित जेल के अधीक्षक या उपाधीक्षक
जेल के प्रभारी न्यायाधीश
यह समिति प्रत्येक माह के पहले और तीसरे सोमवार को बैठक करेगी और उन मामलों पर विचार करेगी, जिनमें गरीब कैदी जमानत राशि देने में असमर्थ हैं।
‘गरीब कैदी सहायता योजना’ के तहत मिलेगा लाभ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि समिति यह सिफारिश करती है कि कोई कैदी “गरीब कैदी सहायता योजना” के अंतर्गत पात्र है, तो उसे ₹50,000 तक की तत्काल सहायता दी जा सकती है।
अगर जमानत राशि ₹50,000 से अधिक है, तो समिति अपने विवेक से ₹1,00,000 तक की राशि का भुगतान कर सकती है।
यदि ट्रायल कोर्ट ने इससे अधिक राशि तय की है, तो DLSA अदालत में आवेदन देकर राशि कम कराने की प्रक्रिया शुरू करेगी।
प्रक्रिया की पारदर्शिता और समय-सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि अब जेल में किसी भी कैदी को बिना वजह नहीं रोका जा सकेगा:
जमानत आदेश के 7 दिन के भीतर रिहाई नहीं होती, तो जेल अधिकारी को DLSA को सूचना देनी होगी।
DLSA यह सुनिश्चित करेगा कि आरोपी के पास कोई आर्थिक साधन है या नहीं।
यदि नहीं, तो 5 दिन के भीतर समिति को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
समिति रिपोर्ट प्राप्त होने के 5 दिन के भीतर राशि जारी करेगी।
‘इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS)’ में एकीकरण तक अंतरिम प्रक्रिया
जब तक यह प्रणाली पूर्ण रूप से डिजिटल रूप में ICJS सिस्टम से नहीं जुड़ जाती, तब तक सभी सूचनाएं ईमेल द्वारा तुरंत भेजने का आदेश दिया गया है।
यदि धनराशि 5 दिनों में जमा नहीं होती या रिहाई नहीं होती, तो छठे दिन जेल अधिकारी पुनः DLSA को सूचित करेगा।
धन वापसी का प्रावधान
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह सहायता राशि केवल जमानत के लिए है।
यदि आरोपी को बरी कर दिया जाता है या दोषी ठहराया जाता है, तो ट्रायल कोर्ट आदेश पारित करेगा कि यह राशि सरकार के खाते में वापस जमा की जाए।
26 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर 2025 को होगी।
अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस नई व्यवस्था के अनुरूप अपनी ‘सहायता योजना’ और एसओपी में आवश्यक संशोधन करे।
मानवता और न्याय का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल न्यायपालिका की संवेदनशीलता को दर्शाता है बल्कि यह संदेश भी देता है कि “गरीबी अपराध नहीं है”।
यह निर्णय देश के उन हजारों गरीब बंदियों के लिए आशा की किरण बना है, जो वर्षों से जेल की दीवारों में इसलिए कैद थे क्योंकि उनके पास जमानत राशि भरने के लिए पैसे नहीं थे।
यह निर्णय न्याय, संवेदना और समानता के बीच सामंजस्य की नई मिसाल है।
यह सचमुच न्यायपालिका की ओर से देश के गरीबों के लिए एक “दिवाली गिफ्ट” है।